16-10-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन 

प्रसिद्धि-संकल्प और बोल की सिद्धि पर आधारित है

ज्ञान की धारणाओं की गुह्यता और महीनता में ले जाने वाले, आनन्द के सागर शिव बाबा बोले -

महारथी बच्चों को वर्तमान समय कौन-सा  पोतामेल रखना है? अभी महारथियों की सीज़न है सिद्धि-स्वरूप बनने की। उनके हर बोल और संकल्प सिद्ध हों। वह तब होंगे जब उनका हर बोल और हर संकल्प ड्रामा अनुसार सत् और समर्थ हो। तो महारथी अब यह पोतामेल रखें कि सारे दिन में जो उनके संकल्प चलते हैं या मुख से जो बोल निकलते है वह कितने सिद्ध होते है? संकल्प है बीज, जो समर्थ बीज होगा उसका फल अच्छा निकलता है। उसको कहेंगे संकल्प-सिद्ध होना। तो सारे दिन में कितने संकल्प और बोल सिद्ध होते हैं? जो बोला ड्रामा अनुसार, वही बोला और जो होना है वही बोला। इसमें हर बोल और संकल्प को समर्थ बनाने में अटेन्शन रखना पड़े। तो महारथियों का पोतामेल अब यह होना चाहिये। जैसे भक्ति में भी कहा जाता है कि यह सिद्धपु रूष है। तो यहाँ भी जिसका संकल्प और बोल सिद्ध होता है तो उस सिद्धि के आधार पर वह प्रसिद्ध बनता है। अगर सिद्ध नहीं तो प्रसिद्ध नहीं। भक्ति में कई देवियाँ व देवताएं प्रसिद्ध होते हैं, कई प्रसिद्ध नहीं होते। वे देवता व देवी तो माने जाते हैं लेकिन प्रसिद्ध नहीं होते। तो संकल्प और बोल सिद्ध होना यह आधार हैं प्रसिद्ध होने का। इससे ऑटोमेटिकली अव्यक्त फरिश्ता बन जायेंगे और समय बच जायेगा। वाणी में आना ऑटोमेटिकली समाप्त हो जायेगा क्योंकि साइलेन्स-होम अथवा शान्ति धाम में जाना है ना? तो वह साइलेन्स के व आकारी फरिश्तेपन के संस्कार अपनी तरफ खींचेंगे। सर्विस भी इतनी बढ़ती जायेगी कि जो वाणी द्वारा सेवा करने का चांस ही नहीं मिलेगा। ज़रूर नैनों द्वारा और अपने मुस्कराते हुए मुख द्वारा, मस्तक में चमकती हुई मणि द्वारा सेवा कर सकेंगे। परिवर्तन होगा ना? वह अभ्यास तब बढ़ेगा जब यह पोतामेल रखेंगे - यह है महारथियों का पोतामेल। महारथी यह पोतामेल तो नहीं रखेंगे ना कि किसको दु:ख दिया व किस विकार के वश हुए? यह तो घुड़सवारों का काम है। महारथियों का पोतामेल भी महान् है। ऐसे आपस में गुह्य पुरूषार्थ के प्लैन्स बनाओ। इस लिये बीच-बीच में टाइम मिलता है। मेले में तो टाइम नहीं मिलता है ना? मेले में फिर दूसरे प्रकार की सेवा में तत्पर होते हो। मेले में है देने का समय और मेले के बाद फिर स्वयं को भरने का समय मिलता है। मेले में देने में ही दिन-रात समाप्त हो जाता है ना? 

बापदादा भी जानते हैं कि जब इतनी आत्माओं को देने के निमित्त बनते हैं तो ज़रूर देने के प्लैन्स व संकल्प चलेंगे। तब तो सन्तुष्टता का सर्टिफिकेट ऑटोमेटिकली मिल जाता है। सब की सन्तुष्टता यह भी अपने पुरूषार्थ में हाई- जम्प देने में सहयोग देती है। यह तो करना ही पड़ेगा लेकिन यह सब बाद की बातें हैं। नोट तो सब करते हो ना? फिर उसको बैठ रिवाइज करना। अभी तो जो मिलता है वह बुद्धि में जमा करते जाते हो फिर बैठ जब रिवाइज़ करके उसकी महीनता व गुह्यता में जायेंगे तो दूसरों को भी गुह्यता में ले जा सकेंगे। अभी जो कुछ चल रहा है, जैसे चल रहा है, बापदादा सन्तुष्ट और हर्षित है। अच्छा।